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Thursday, October 23, 2014

तुम दूर चले..













तुम दूर चले, अति-दूर चले,
फिर तुम पर, स्वार्थ तुम्हारा हावी था|

सुध रही नही तुम्हे, तुम्हारे प्रियतम की,

बालों की, घरवालों की|
तुम छोड चले, आँखों मे आँसू छोड़ चले,
फिर तुम पर, क्रोध तुम्हारा हावी था|
तुम दूर चले..

सहारे थे तुम, प्राणों से प्यारे थे तुम,

नूर भारी आँखों के तारे थे तुम|
पर ममता का दिल तोड़ चले, बूढ़े की लाठी तोड़ चले,
फिर तुम पर, जुनून तुम्हारा हावी था|
तुम दूर चले..

ना तुम जीते, ना वो कारण हारा,

हारा महज़ तुम्हारा धीरज था|
तुम हार चले, सब हार चले,
फिर तुम पर प्रतिशोध तुम्हारा हावी था|
तुम दूर चले..

उस दर्द से थोड़ा लड़ लेते,

सही ग़लत की दुविधा थी तो, राह ग़लत ही चुन लेते|
किसी ग़लत कर्म की ग्लानि थी तो, पश्चाताप की अग्नि जल लेते|
किसी के प्रेम मे दिल जो टूटा था, तो प्रेम बिना ही जी लेते|
पर तुम घुटने टेक चले, परिस्थितियों के आगे घुटने टेक चले..


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