खुली हवा सा बहना भी नहीं आता, क्या करूँ?
क्या करूँ जो मेरे हौंसलों मे दम नहीं,
कलाकारों की तरह, बनावटी मुस्कान लाना भी नही आता, क्या करूँ?
समाज के तौर तरीकों की समझ तो है,
पर उनमें खुद को ढालना नहीं आता, क्या करूँ?
जीवन क रास्ते टेढ़े हैं, पता है,
सीधे रास्तों पे भी चलने का सहूर नहीं, क्या करूँ?
दुनिया गर दीवानों की है, तो दीवाना मैं भी हूँ|
दीवानगी जतानी नहीं आती, क्या करूँ?
दोस्त भी हैं, उनका साथ भी है,
मुझे ही दोस्ती निभानी नही आती,क्या करूँ?
दुनिया छोटी है, पढ़ा था कहीं,
मुझे मेरे मन ही का छोर नहीं मिलता, क्या करूँ?
ईश्वर यहीं है, सारे सुख भी यहीं,
मुझे मैं ही नहीं मिलता, क्या करूँ?
खैर, ये मेरे सवाल, मुझसे ही हैं,
जिनके जवाब ढूढ़ना, काम फ़िज़ूल का है|
गरमा-गरम चाय और पकोड़ो के साथ बारिश का मज़ा लो,
मेरा तो ये रोज़ का है!!
हा हा..